- Hindi News
- Local
- Uttar pradesh
- Prayagraj
- Uttar Pradesh Assembly Election 2022: BJP Could Never Register Victory In Karchana Assembly Seat, Raja Baraon Has The Only Rule On The Karchana Seat Of Prayagraj
प्रयागराजएक घंटा पहले
- कॉपी लिंक
यूपी विधानसभा चुनाव में करछना विधानसभा सीट एक बार फिर चर्चा में है।
देश की एक विधानसभा सीट ऐसी है, जिसपर आजादी के बाद एक बार भी भारतीय जनता पार्टी कभी विजय हासिल नहीं कर पाई है। यहां राजा बरांव यानी कुंवर रेवती रमण सिंह खानदान का एकक्षत्र राज है। रेवती रमण सिंह यहां से 7 बार विधायक रहे हैं। उनके बाद बेटे कुंवर उज्जवल रमण सिंह ने इसपर अपना प्रभुत्व कायम रखा है। खास बात यह है कि मोदी लहर में भी प्रदेश की हॉट सीटों में शुमार करछना पर कमल नहीं खिला। यहां रेवती रमण के बेटे उज्जवल रमण सिंह ने विजय हासिल की थी। इस बार भी चुनाव भाजपा वर्सेस सपा ही है। जीत किसकी होगी यह तो 10 मार्च को पता चलेगा पर दाेनों की पार्टियों ने अपनी अपनी ताकत झोंक रखी है।
यमुनापार के बाद शहर से सटी करछना विधानसभा सीट राजनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। करछना विधानसभा का गठन चाका ब्लॉक के साथ कौंधियारा के कुछ हिस्से को शामिल करते हुए किया गया है। नगर निगम सीमा के विस्तार के बाद कुछ हिस्सा शहरी सीमा में शामिल हो गया है पर अभी यहां वार्ड नहीं बनाए गए हैं।

उज्जवल रमण सिंह की पहचान सपा के कद्दावर नेताओं में होती है।
घर-घर है पहुंच और पकड़ है सपा की ताकत
सपा के राज्यसभा सदस्य कुंवर रेवती रमण सिंह के पुत्र उज्जवल रमण यहां से विधायक हैं। इस क्षेत्र में उनका खासा दबदबा है, लोकप्रिय हैं। हर घर में उनकी पकड़ और पहुंच है। चाका और कौंधियारा ब्लाक के लगभग हर बूथ पर उज्जवल रमण सिंह की दावेदारी मजबूत है। करछना ब्लॉक में जहां पटेल मतदाताओं की संख्या ज्यादा है वहां अपेक्षाकृत सपा के वोटर कम हैं।
क्या हैं प्रमुख स्थानीय चुनावी मुद्दे
यमुनापार का इलाका खेती की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन पिछले 5 सालों में बेसहारा जानवरों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि ने किसानों की कमर तोड़ दी है। कई गांव तो सिर्फ फूलों की खेती और लेमनग्रास पर निर्भर हो गए हैं, लेकिन फूलों की खेती के बाद उन्हें स्थानीय स्तर पर मंडी न मिलना भी चुनावी मुद्दा है। इसके अलावा बेरोजगारी और बेकारी भी एक स्थानीय मुद्दा है।

उज्जवल रमण सिंह अपनी जीत दोहराने के लिए पूरी ताकत से लगे हैं।
मुस्लिम और ब्रह्मण होंगे जिताऊ
उज्जवल रमण सिंह अपने पुराने पैटर्न पर चल रहे हैं। मुस्लिम याद और ब्राम्हण की सेक्टर पर काम कर रहे हैं। वहीं अब तक सीट पर भाजपा कभी जीत नहीं सकी है इस भ्रम को तोड़ने के लिए पीयूष रंजन निषाद, कुशवाहा और पटेल बिरादरी को साधने में जुटे हैं। पीयूष के पास काम बनाने के लिए भाजपा है तो वही क्षेत्र का विकास उज्जवल रमण की ताकत।
आइए डालते हैं पिछले चुनाव पर एक नजर
2017 के चुनाव में पीयूष रंजन निषाद भाजपा के उम्मीदवार थे, जबकि उनके मुकाबले में सपा के उज्जवल रमण सिंह चुनावी मैदान में उतरे थे। उज्जवल रमण सिंह जमीन से जुड़े नेता रेवती रमण के बेटे हैं, इसका लाभ भी उन्हें इस क्षेत्र से मिला है। इसके अलावा यहां के कुशवाहा और यादव मुस्लिम का गठजोड़ ने भी सपा की बढ़त में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था। यही कारण था कि मोदी लहर में भी पीयूष रंजन निषाद अपनी सीट जीत नहीं सके। 2017 के चुनाव में प्रयागराज में इकलौती विधानसभा थी जहां सपा को जीत मिली थी।

भाजपा की सहयोगी पार्टी से उम्मीदवार पीयूष रंजन निषाद ने भी पूरी ताकत झोंक रखी है।
क्या हो सकता है संभावित परिणाम?
अगर कोई बहुत बड़ी उठापठक नहीं हो तो फिर उज्जवल रमण सिंह यहां से जीतते दिखाई दे रहे हैं हालांकि मुकाबला रोमांचक और कांटे का होगा। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण रेवती रमण सिंह का काफी लंबे समय से यहां से विधायक रहना और जनता के बीच जमीनी स्तर पर पकड़ होना है। कहा जाता है कि आज भी कुंवर रेवती रमण सिंह करछना के एक-एक बूथ लेवल के कार्यकर्ता का नाम और उसका घर जानते हैं। सुख-दुख में साथ खड़े होते रहे हैं।
गांव-गांव व घर-घर में नेटवर्किंग रही है। कास्ट स्ट्रक्चर भी फिट है। बीजेपी अगर जी-जान लगाएगी तो शायद यह सीट जीत जाए। हालांकि यह इतना आसान नहीं लगा रहा है।
इतिहास पर एक नजर
करछना विधानसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो इस सीट पर सबसे अधिक 7 बार रेवती रमण सिंह ने फतह हासिल की है। बरांंव राजघराने से संबंध रखने वाले रेवती रमण सिंंह ने अलग-अलग दलों के टिकट पर इस सीट से विधानसभा का सफर तय किया है। इस सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो 1951 में हेमवती नंदन बहुगुणा ने इस सीट से जीत दर्ज की थी। 1957 में कांग्रेस के कमल कुमार गोइंदी, 1962 में पीएसपी के सत्य नारायण पांडेय, 1967 के चुनाव में निर्दलीय एस दीन, 1969 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट से राम किशोर शुक्ला ने जीत दर्ज की थी। 1974 के चुनाव में पहली बार एनसीओ के टिकट से रेवती रमण ने जीत दर्ज की थी। 1977 में रेवती रमण सिंह जनता पार्टी के टिकट से चुनाव जीते थे। 1980 में कांग्रेस के कृष्ण प्रकाश विजयी हुए। 1985 और 1989 के चुनाव में इस सीट पर रेवती रमण सिंह ने जनता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की तो 1991 में वह जनता दल के टिकट पर विधानसभा पहुंचे।
जातिगत समीकरण
यहां 80 हजार कुर्मी मतदाता तो करीब 50 हजार यादव और 50 हजार मुस्लिम के साथ 15 हजार कुशवाहा और 15 हजार पाल बिरादरी के मतदाता हैं। 55 हजार पासी और 20 हजार से ज्यादा हरिजन किसी की भी जीत के सपने को बट्टा लगा सकते हैं।