Un Armed Combat Training Being Given To Itbp Jawans In Panchkula – अगर चीन ने दोहराया गलवान तो निहत्थे ही धूल चटा सकेंगे Itbp के जवान, पंचकूला में दी जा रही खास ट्रेनिंग

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चीनी सेना के फौजी (फाइल फोटो)

चीनी सेना के फौजी (फाइल फोटो)
– फोटो : Video Grab

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चीन के साथ लगती एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर तैनात भारत-तिब्बत सीमा बल के जवान अब दुश्मन सेना को निहत्थे ही धूल चटा सकेंगे। 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के क्रूर हमले जैसी परिस्थितियों से निपटने के लिए आईटीबीपी ने अन-आर्म्ड कॉम्बैट रणनीति बनाई है, जिसके तहत जवानों को हथियारों के बिना किसी भी तरह की आपात स्थिति से निपटने का आक्रामक प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

आईटीबीपी के महानिरीक्षक ईश्वर सिंह दुहन ने बताया कि निहत्थे युद्ध लड़ने की नई तकनीक में रक्षात्मक और आक्रामक दोनों चालें शामिल हैं। उन्होंने बताया कि पूर्व महानिदेशक संजय अरोड़ा के निर्देश पर पिछले साल जवानों के लिए यह मॉड्यूल लाया गया था। इसके तहत पंचकूला के भानू स्थित आईटीबीपी के बीटीसी में अनुभवी प्रशिक्षक जवानों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। एलएसी के साथ कुछ सबसे कठिन चौकियों में तैनात सैनिकों की शारीरिक क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से इस प्रशिक्षण मॉड्यूल को तैयार किया है। इससे प्रशिक्षित जवान बर्फीले तूफान, हिमस्खलन और ऑक्सीजन की कमी जैसी अनिश्चितताओं का भी सामना कर सकते हैं। 

44 सप्ताह का विशेष प्रशिक्षण
जवानों को परांगत बनाने के लिए 44 सप्ताह का विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इसमें जूडो, कराटे, क्राव मागा और जापानी मार्शल आर्ट के कुल 15 स्टेप शामिल किए गए हैं। जवानों को इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि ताकि चाकू या डंडे से लैस हमलावर को एक पल में चित कर दे। इसमें तीन-तीन मिनट के विशेष कोर्स में जवानों को पारंगत किया जा रहा है। 

90 दिन से ज्यादा सीमा पर तैनात नहीं होंगे जवान 
आईजी ईश्वर सिंह दुहन ने बताया कि सीमा और ऊंचाई पर जवानों को लगातार 90 दिन से अधिक समय तक तैनात नहीं किया जाएगा। आईटीबीपी ने कई वैज्ञानिक मापदंडों और डीआरडीओ के डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोलॉजी एलाइड साइंसेज (डीआईपीएएस) से रायशुमारी लेने के बाद यह निर्णय लिया है। कई शोधों से पता चला है कि कर्मियों की एक पोस्ट पर लंबे समय तक तैनाती उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति के लिए ठीक नहीं। 

चीनी सैनिकों ने 2020 में किया था क्रूर हमला 
जून 2020 में गलवान घाटी (लद्दाख) में भारतीय सैनिकों पर चीनी सैनिकों ने क्रूर हमले को अंजाम दिया था। इसमें पत्थरों, कीलयुक्त डंडों, लोहे की छड़ों का इस्तेमाल किया गया था। इस हमले 20 भारतीय सैनिकों की जान गई थी। वहीं चीन अभी तक मौत का आंकड़ा छिपा रहा है। मगर अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया के मीडिया के मुताबिक चीनी सैनिकों के मारे जाने का आंकड़ा 40 से 45 तक है। लगभग 98000 जवानों से लैस आईटीबीपी लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी की सुरक्षा में तैनात है। 

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चीन के साथ लगती एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर तैनात भारत-तिब्बत सीमा बल के जवान अब दुश्मन सेना को निहत्थे ही धूल चटा सकेंगे। 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के क्रूर हमले जैसी परिस्थितियों से निपटने के लिए आईटीबीपी ने अन-आर्म्ड कॉम्बैट रणनीति बनाई है, जिसके तहत जवानों को हथियारों के बिना किसी भी तरह की आपात स्थिति से निपटने का आक्रामक प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

आईटीबीपी के महानिरीक्षक ईश्वर सिंह दुहन ने बताया कि निहत्थे युद्ध लड़ने की नई तकनीक में रक्षात्मक और आक्रामक दोनों चालें शामिल हैं। उन्होंने बताया कि पूर्व महानिदेशक संजय अरोड़ा के निर्देश पर पिछले साल जवानों के लिए यह मॉड्यूल लाया गया था। इसके तहत पंचकूला के भानू स्थित आईटीबीपी के बीटीसी में अनुभवी प्रशिक्षक जवानों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। एलएसी के साथ कुछ सबसे कठिन चौकियों में तैनात सैनिकों की शारीरिक क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से इस प्रशिक्षण मॉड्यूल को तैयार किया है। इससे प्रशिक्षित जवान बर्फीले तूफान, हिमस्खलन और ऑक्सीजन की कमी जैसी अनिश्चितताओं का भी सामना कर सकते हैं। 

44 सप्ताह का विशेष प्रशिक्षण

जवानों को परांगत बनाने के लिए 44 सप्ताह का विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इसमें जूडो, कराटे, क्राव मागा और जापानी मार्शल आर्ट के कुल 15 स्टेप शामिल किए गए हैं। जवानों को इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि ताकि चाकू या डंडे से लैस हमलावर को एक पल में चित कर दे। इसमें तीन-तीन मिनट के विशेष कोर्स में जवानों को पारंगत किया जा रहा है। 

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