एक घंटा पहलेलेखक: राजेश साहू
21 मार्च 2022, मेरठ के नारंगपुर गांव में एक लड़के ने 19 साल की शिवानी को इसलिए गोली मार दी क्योंकि उसने उसके प्रपोजल को स्वीकारा नहीं। 2022 की पहली तारीख को देवबंद में एक लड़के ने 22 साल की लड़की को भरे बाजार चाकू से उसके पेट और सीने में मारकर हत्या कर दी। एकतरफा प्रेम में हत्याओं की लिस्ट लगातार लंबी हो रही है। मर्डर मिस्ट्री सीरीज की पांचवी कहानी एकतरफा प्रेम से जुड़ी है। जहां आईपीएस के बेटे ने अपनी ही जूनियर के साथ रेप किया और भयानक तरीके से हत्या कर दी। आइए पूरी कहानी बताते हैं…
श्रीनगर और जम्मू के बाद दिल्ली लॉ पढ़ने आई प्रियदर्शिनी
1996 में प्रियदर्शिनी मट्टू 26 साल की थी। जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में घर था। वहीं पास के स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई की। बीकॉम करने जम्मू चली गई। चाचा से कहा कानून की पढ़ाई करनी है। चाचा ने दिल्ली में अपने पास बुला लिया। मट्टू ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ लॉ में एलएलबी में एडमिशन ले लिया। वह गाना बढ़िया गाती थी इसलिए उसके दोस्त उसे टॉम-बॉय कहने लगे थे।

प्रियदर्शिनी शुरुआती पढ़ाई श्रीनगर और जम्मू में करने के बाद दिल्ली चली आई और डीयू में एडमिशन ले लिया।
आईपीएस अधिकारी के बेटे की नजर प्रियदर्शिनी पर पड़ी, और वहीं अटक गई
संतोष सिंह भी डीयू से लॉ की पढ़ाई कर रहा था। वह प्रियदर्शिनी का सीनियर था। उसके पिता आईपीएस जेपी सिंह जम्मू कश्मीर में इंस्पेक्टर ऑफ जनरल पुलिस के पद पर तैनात थे। संतोष की नजर उस पर पड़ी। दोस्तों के जरिए प्रियदर्शनी के बारे में जानकारी जुटाई। उससे बात करने की कोशिश की, लेकिन प्रियदर्शिनी ने कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाया। संतोष पीछे नहीं हटा। मानो उसने तय कर लिया हो कि प्रियदर्शिनी को प्रेमिका बनाकर मानूंगा।
संतोष ने कहा, मुझपर भरोसा करो वरना पछतावा होगा
संतोष सिंह ने डीयू कैंपस में ही प्रियदर्शिनी को प्रपोज कर दिया। लड़की ने इंकार कर दिया। कुछ दिन बार फिर प्रपोज करते हुए संतोष ने कहा, “मुझ पर भरोसा करो, तुम्हें इसका पछतावा होगा, तुम्हें अपनी लाइफ में मेरे जैसा लड़का चाहिए।” प्रियदर्शिनी नहीं मानी। संतोष सिंह पढ़ाई पूरी करके कॉलेज से निकल गया लेकिन उसने पीछा नहीं छोड़ा। अब वह बुलेट लेकर कभी कैंपस में तो कभी किसी चौराहे पर प्रियदर्शनी के पीछे लग जाता। प्रियदर्शिनी परेशान हो गई। बात चमन लाल मट्टू तक पहुंच गई। पिता ने प्रियदर्शनी से कहा, “तुम पुलिस के पास जाओ और केस दर्ज करवाओ।”

संतोष प्रियदर्शिनी को अपनी प्रेमिका बनाना चाहता था लेकिन उसको वह एकदम पसंद नहीं था। यही बात उसे खराब लग गई।
प्रियदर्शिनी थाने गई तो संतोष ने झूठे मुकदमे में फंसा दिया
लड़की पुलिस के पास पहुंच गई। आईपीएस जेपी सिंह के बेटे से मामला जुड़ा होने के कारण पहले तो पुलिस ने आनाकानी की लेकिन दबाव बढ़ा तो मामला दर्ज किया। राजिंदर सिंह नाम के सिपाही की ड्यूटी प्रियदर्शनी की सुरक्षा में लगा दी गई। इसी दौरान संतोष ने भी प्रियदर्शनी के खिलाफ एक साथ दो डिग्रियों के लिए पढ़ाई करने का आरोप लगाया और शिकायत दर्ज करवा दी। डीयू प्रशासन ने इसकी जांच की तो पाया कि प्रियदर्शिनी ने एमकॉम पूरा करने के बाद एलएलबी में एडमिशन लिया है। संतोष सिंह झूठ बोल रहा है।
समझौता करने प्रियदर्शिनी के फ्लैट में घुसा संतोष
23 जनवरी 1996, लड़की अपने बसंत विहार वाले फ्लैट में थी। संतोष सिंह वहां बाइक से पहुंचा और दरवाजा खटखटाया। प्रियदर्शनी के नौकर बीरेंद्र प्रसाद ने दरवाजा खोला और कहा, “तुम यहां कैसे?” संतोष बोला, “कुछ नहीं, बात करने आए हैं, अब सब सही हो जाएगा।” बीरेंद्र ने संतोष को अंदर आने दिया और खुद घर का सामान लाने बाहर चले गए।

यह वही घर है जहां प्रियदर्शिनी रहती थी। इसी जगह पर उसके साथ रेप करके हत्या की गई थी।
रेप किया फिर मारने के लिए हथियार ढूंढा, कुछ नहीं मिला तो हेलमेट से 14 बार मारा
संतोष सिंह अंदर पहुंचा तो अपने असली रूप में आ गया। प्रियदर्शिनी के साथ जबरदस्ती करने लगा। लड़की ने विरोध किया तो संतोष उसपर टूट पड़ा। पिटाई कर दी। सहमी प्रियदर्शिनी के साथ रेप कर दिया। इसके बाद वह जो हेलमेट लेकर अंदर गया था उसी से प्रियदर्शनी के चेहरे पर 14 बार वार किया और फिर हीटर के तार से गला घोंट दिया। इसके बाद वह बड़े आराम से वहां से भाग गया।
शाम के 5.30 बजे थे। सुरक्षा में तैनात राजिंदर सिंह कांस्टेबल देव कुमार के साथ पहुंचे तो घर की स्थिति देखकर दंग रह गए। प्रियदर्शिनी की लाश बेड के नीचे खून से लथपथ पड़ी थी। राजिंदर सिंह ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। पुलिस आई और जांच में जुट गई। उसके मम्मी-पापा आ गए। मां रागेश्वरी मट्टू दहाड़े मारकर रो रही थी। चमन लाल मट्टू उनको संभाल रहे थे लेकिन उनकी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहा था।

चमल लाल अपनी बेटी प्रियदर्शिनी की मौत के बाद एकदम टूट से गए, लेकिन न्याय के लिए आखिरी दम तक लड़ाई लड़ी।
संतोष पर केस लगा तभी जेपी सिंह का दिल्ली ट्रांसफर हो गया
पुलिस ने मामले की जांच शुरू की। इसी दौरान संतोष के पिता जेपी सिंह का ट्रांसफर दिल्ली में हो गया। वह ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस के पद पर नियुक्त हुए। दिल्ली में पुलिस कमिश्नर के बाद ये दूसरी रैंक होती है। जेपी सिंह के दबाव के कारण प्रियदर्शिनी मर्डर केस कमजोर होता गया। पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि दुष्कर्म नहीं हुआ। संतोष को फंसाने के लिए उसका ब्लड सैंपल लिया और लड़की के अंडरवियर में डाल दिया गया। सीबीआई को इन्हीं सबूतों के साथ ये केस मिला।
जज ने कहा, संतोष ने हत्या की है फिर भी छोड़ रहा हूं
3 दिसंबर 1999 को दिल्ली की सेशन कोर्ट ने संतोष सिंह को बरी कर दिया। जज जीपी थरेजा ने कहा, “हम जानते हैं कि हत्या संतोष सिंह ने की है लेकिन सीबीआई ने जो सबूत सौंपा है वह बेहद घटिया है। सीबीआई ने अपना काम सही से नहीं किया।” फैसला जैसे ही लोगों को पता चला हंगामा हो गया। देश में पहली बार लोग इंसाफ के लिए कैंडल लेकर बाहर निकले। सीबीआई को भी फैसला रास नहीं आया और उसने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ 29 फरवरी 2000 में दिल्ली हाईकोर्ट में अपील कर दी।
कोर्ट से बरी होते ही संतोष ने शादी की और वकील बन गया
1999 में कोर्ट से बरी होने के बाद संतोष सिंह ने धूमधाम से शादी कर ली। वकील बनकर दिल्ली के कोर्ट में जाने लगा। कुछ समय बाद एक बेटी हो गई। वहीं दूसरी तरफ दिल्ली हाईकोर्ट में मामला पहुंचा जरूर था लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। 6 साल बीत गए एक बार भी मामले पर सुनवाई नहीं हुई। संतोष के पिता रिटायर हो गए और दूसरी तरफ जेसिका लाल मर्डर केस में फैसला आया। इन दो कारणों ने प्रियदर्शिनी मामले की फाइल खोल दी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की हियरिंग डेली बेसिस पर शुरू की। नतीजा ये रहा कि 42 दिन की हियरिंग के बाद संतोष सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।
42 दिन तक लगातार चली सुनवाई के बाद फांसी की सजा
6 साल तक जिस प्रियदर्शिनी मामले पर एक सुनवाई नहीं हुई उसपर सितंबर 2006 से हर दिन सुनवाई होने लगी। कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलें सुनता। सीबीआई के पेश किए गए सबूत देखता। 42 दिन बाद 17 अक्टूबर 2006 को कोर्ट ने संतोष को प्रियदर्शनी के साथ रेप और हत्या का दोषी पाया। 30 अक्टूबर 2006 को दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रियदर्शनी की हत्या को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर बताते हुए संतोष सिंह को फांसी की सजा सुनाई। इस फैसले के बाद प्रियदर्शनी के पिता की आंखो से आंसू निकल आए।
अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला बदल दिया
संतोष सिंह ने 19 फरवरी 2007 को दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। सुनवाई शुरू हुई तो संतोष के वकील ने फिर से डीएनए रिपोर्ट पर सवाल उठा दिए। इसके लिए वकील ने निचली अदालत के फैसले को आगे कर दिया। संतोष की बेटी का भी हवाला दिया गया। नतीजा ये रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2010 में फांसी के फैसले को उम्रकैद में बदल दिया।
प्रियदर्शिनी को न्याय दिलाने के लिए उनके पिता ने अथक मेहनत की। कोर्ट की हर तारीख पर मौजूद रहे। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो थोड़ा निराश हुए और कहा, “मुझे उम्मीद थी कि संतोष कुमार सिंह की मौत की सजा को बरकरार रखा जाएगा, 14 साल का संघर्ष बहुत होता है।”