न्यूजीलैंड. ओजोन परत चार दशकों के अंदर खुद को हुए नुकसान की भरपाई करने की राह पर है, लेकिन इस अवधि में रॉकेट प्रक्षेपण में अधिक बढ़ोतरी की संभावना इस प्रगति पर पानी फेरते हुए इसे फिर से पहले के स्तर पर पहुंचा सकती है. ओजोन परत सूर्य की पराबैगनी किरणों (यूवी) से धरती पर जीवन की रक्षा करती है.
बता दें कि ओजोन परत में क्षति वर्ष 1985 में प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया था, जब अंटार्कटिक क्षेत्र के ऊपर आकाश में ‘ओजोन होल’ (ओजोन छिद्र) की खोज की गई थी. हालांकि वैश्विक प्रयासों के चलते ‘मांट्रियल प्रोटोकॉल’ वर्ष 1987 में अस्तित्व में आ गया, जिसने रसायनों के एक वर्ग पर प्रतिबंध की राह दिखाई, जिन्हें क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सीएफसी) कहा जाता है. सीएफसी का इस्तेमाल रेफ्रिजरेटर और एरोसोल में किया जाता है.
रॉकेट लॉन्चिंग से ओजोन परत को कैसे पहुंच रहा नुकसान?
इसके परिणाम स्वरूप एक वैश्विक संकट तो टल गया, लेकिन वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और सालाना प्रक्षेपित किए जाने वाले रॉकेट की संख्या बढ़ती जा रही है. रॉकेट प्रक्षेपण से उत्सर्जित होने वाली गैसें और ‘पार्टीकुलेट’ वायुमंडल में पहुंचकर ओजोन परत को हुए नुकसान की भरपाई की अवधि को लंबा कर सकते हैं.
रॉकेट ईंधन से होने वाले उत्सर्जन को लेकर कोई विनियमन नहीं किया गया है. प्रक्षेपण उद्योग रॉकेट भेजने के लिए चार प्रमुख प्रकार के ईंधन पर निर्भर है जो ये हैं- लिक्विड केरोसीन, क्रायोजेनिक, हाइपरगोलिक और ठोस. इन ईंधनों के जलने का मतलब है कि रॉकेट कार्बन डाईऑक्साइड, भाप, ब्लैक कार्बन, एल्युमिना, रिएक्टिव क्लोराइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड समेत अन्य गैसें और पार्टीकुलेट उत्पन्न करता है जिन्हें ओजोन परत को नष्ट करने के लिए जाना जाता है.
वायुमंडल की ऊपरी सतह ‘स्ट्रैटोस्फीयर’ में स्थित ओजोन परत को यह उत्सर्जन नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि उत्सर्जित ये गैसें निचली सतह की अपेक्षा ऊपरी सतह पर अधिक समय तक रहती हैं. वहीं एक नया ईंधन मीथेन है जिसका उपयोग प्रमुख प्रक्षेपण कंपनियों द्वारा विकसित किए जा रहे कई रॉकेट इंजनों में किया जाता है. मीथेन से उत्सर्जित होने वाले उत्पादों को अभी तक कमतर करके आंका गया है.
ऊपरी वायुमंडल में रॉकेट उत्सर्जन ओजोन परत को प्रभावित कर सकता है, लेकिन इसका नियमन नहीं किया गया है. हमारा कहना है कि रॉकेट प्रक्षेपण उद्योग के सतत विकास और ओजोन परत की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस नीतिगत अंतर की भरपाई करनी होगी.
करिश्माई तकनीक
ठोस रॉकेट ईंधन में एक रसायन होता है जो ऊपरी वायुमंडल में क्लोरीन का उत्सर्जन करके ओजोन परत को नुकसान पहुंचाता है. सीएफसी को इसीलिए प्रतिबंधित किया गया था कि उसमें क्लोरीन थी. सौभाग्य से अब तक प्रक्षेपणों की संख्या इतनी कम है कि ओजोन परत पर इसका प्रभाव वर्तमान में नहीं के बराबर है. हालांकि, आने वाले दशकों में प्रक्षेपण उद्योग का काफी विस्तार होना तय है. वित्तीय अनुमानों से संकेत मिलता है कि वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग 2040 तक 3700 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकता है.
डाटा इकट्ठा करना और शेयर करना
रॉकेट प्रक्षेपण सेवा प्रदाता, पर्यावरण नियामकों, वायुमंडलीय अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिकों और सरकारी एजेंसियों समेत कई समुदायों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है. सतत विकास के लिए सर्वोत्तम अभ्यास संचालन के तरीके तैयार करने पर चर्चा हो, लेकिन अंतरिक्ष उद्योग के विकास पर अंकुश लगाने की जरूरत नहीं है.
हर समुदाय जो सबसे अधिक योगदान दे सकता है उनमें पहला यह है कि डाटा एकत्र करने के साथ इसको साझा करें. इसी तरह शोधकर्ताओं के साथ वातावरण में उत्सर्जन की मात्रा का नमूना लेने पर ओजोन परत पर उत्सर्जन के वास्तविक असर की समझ विकसित करने में मदद मिलेगी.
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FIRST PUBLISHED : February 13, 2023, 05:30 IST