Jbt Teacher Liladhar Brought The Number Of Children From 88 To 113 In Government School, Stopped Migrating In – Teachers Day 2022: जेबीटी शिक्षक लीलाधर ने 88 से 113 पहुंचाई सरकारी स्कूल में बच्चों की संख्या, पलायन रोका

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हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के अति दुर्गम प्राइमरी स्कूल सिहण में तीन वर्षों से तैनात एकमात्र अध्यापक लीलाधर शर्मा 113 बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। वह गांव-गांव जाकर बच्चों को सरकारी स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। तीन साल पहले जब लीलाधर ने इस स्कूल का कार्यभार संभाला था, तब यहां आसपास के गांव के 88 बच्चे पढ़ाई कर रहे थे। शिक्षकों की कमी से अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश दिला रहे थे। जेबीटी शिक्षक ने स्कूल में पढ़ाई के बेहतर माहौल के साथ छात्रों को आकर्षित करने के लिए खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया।

लीलाधर सुबह स्कूल जाने से पहले और शाम को छुट्टी होने के बाद गांव-गांव जाकर अभिभावकों से मिले और बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने के लाभ बताए। अभिभावकों को सरकार ने बच्चों के लिए मुफ्त वर्दी, किताबें और मिड-डे मील देने की योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया। इस दौरान निजी स्कूलों में चलाए जाने वाली नर्सरी और केजी क्लासों का विकल्प सरकारी स्कूल में न होना आड़े आया। लीलाधर ने अपने बलबूते स्कूल में ये दोनों कक्षाएं भी शुरू कर दीं। इसके लिए स्कूल प्रबंधन समिति के तहत एक अध्यापक को लगाया गया। धीरे-धीरे निजी स्कूल के कई छात्र प्राथमिक पाठशाला सिहण में दाखिला लेने लगे और लीलाधर का गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का सपना साकार हुआ। पाठशाला में तुंग, शफाडी, सिहण, जलाहरा, रूआड आदि गांव के बच्चे निजी स्कल छोड़कर आने लगे।

लीलाधर ने बताया कि बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद लाभ भी बताए गए। पाठशाला के एक दर्जन छात्र राज्य स्तर तक अपनी प्रतिभा का लौहा मनवा चुके हैं। कबड्डी और वॉलीबाल में यहां के कई छात्रों का चयन जिला स्तर की खेलकूद प्रतियोगिताओं के लिए हो चुका है। स्कूल प्रबंधन समिति की अध्यक्ष निर्मला ठाकुर ने बताया कि पाठशाला में लीलाधर शर्मा का योगदान सराहनीय रहा है। अकेले अध्यापक ने बच्चों की पांच कक्षाओं को पढ़ाया। खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियां करवाईं और गांव-गांव जाकर सरकारी स्कूलों के लिए बच्चों को चलाई जा रही योजनाएं भी बताईं। दुगर्म गांव होने से कोई भी अध्यापक यहां नहीं आना चाहता। कहा कि पिछले माह 16 अगस्त को यहां एक अन्य अध्यापक की नियुक्ति हुई है। तीन साल के बाद अब लीलाधर का बोझ कम हुआ है। 

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हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के अति दुर्गम प्राइमरी स्कूल सिहण में तीन वर्षों से तैनात एकमात्र अध्यापक लीलाधर शर्मा 113 बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। वह गांव-गांव जाकर बच्चों को सरकारी स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। तीन साल पहले जब लीलाधर ने इस स्कूल का कार्यभार संभाला था, तब यहां आसपास के गांव के 88 बच्चे पढ़ाई कर रहे थे। शिक्षकों की कमी से अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश दिला रहे थे। जेबीटी शिक्षक ने स्कूल में पढ़ाई के बेहतर माहौल के साथ छात्रों को आकर्षित करने के लिए खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया।

लीलाधर सुबह स्कूल जाने से पहले और शाम को छुट्टी होने के बाद गांव-गांव जाकर अभिभावकों से मिले और बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने के लाभ बताए। अभिभावकों को सरकार ने बच्चों के लिए मुफ्त वर्दी, किताबें और मिड-डे मील देने की योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया। इस दौरान निजी स्कूलों में चलाए जाने वाली नर्सरी और केजी क्लासों का विकल्प सरकारी स्कूल में न होना आड़े आया। लीलाधर ने अपने बलबूते स्कूल में ये दोनों कक्षाएं भी शुरू कर दीं। इसके लिए स्कूल प्रबंधन समिति के तहत एक अध्यापक को लगाया गया। धीरे-धीरे निजी स्कूल के कई छात्र प्राथमिक पाठशाला सिहण में दाखिला लेने लगे और लीलाधर का गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का सपना साकार हुआ। पाठशाला में तुंग, शफाडी, सिहण, जलाहरा, रूआड आदि गांव के बच्चे निजी स्कल छोड़कर आने लगे।

लीलाधर ने बताया कि बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद लाभ भी बताए गए। पाठशाला के एक दर्जन छात्र राज्य स्तर तक अपनी प्रतिभा का लौहा मनवा चुके हैं। कबड्डी और वॉलीबाल में यहां के कई छात्रों का चयन जिला स्तर की खेलकूद प्रतियोगिताओं के लिए हो चुका है। स्कूल प्रबंधन समिति की अध्यक्ष निर्मला ठाकुर ने बताया कि पाठशाला में लीलाधर शर्मा का योगदान सराहनीय रहा है। अकेले अध्यापक ने बच्चों की पांच कक्षाओं को पढ़ाया। खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियां करवाईं और गांव-गांव जाकर सरकारी स्कूलों के लिए बच्चों को चलाई जा रही योजनाएं भी बताईं। दुगर्म गांव होने से कोई भी अध्यापक यहां नहीं आना चाहता। कहा कि पिछले माह 16 अगस्त को यहां एक अन्य अध्यापक की नियुक्ति हुई है। तीन साल के बाद अब लीलाधर का बोझ कम हुआ है। 

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