साल 1948 में हिमाचल के गठन के बाद प्रदेश ने अब तक दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति की। बात चाहे आधारभूत ढांचे के विस्तार की हो या फिर खुशहाली की, देवभूमि विकास की राह पर सरपट दौड़ती चली गई। हिमाचल देवी-देवताओं और वीरों की भूमि ही नहीं हुनरमंद हाथों की भी जननी है। प्रदेश में हस्तशिल्प और हथकरघा के समृद्ध खजाने को यहां के शिल्पी और बुनकरों के हुनरमंद हाथ न सिर्फ संवार रहे हैं बल्कि मजबूती से आगे भी बढ़ा रहे हैं।
इन दशकों में गांव से लेकर शहरों की तस्वीर भी बदली है।
गांव भी शहरीकरण से अछूते नहीं रहे। बदलते चले गए देवभूमि के स्वरूप में शहरीकरण पांव पसारता चला गया और जगह-जगह हरियाली की जगह कंकरीट के जंगल खड़े हो गए। आबादी का लगातार बढ़ता गया दबाव और वाहनों की रेलमपेल पहाड़ों के खुलेपन और शांत आबोहवा को निगल गया। देवभूमि में आए बदलाव को तस्वीरों से बयां करती हमारे छायाकारों शिमला से नरेश भारद्वाज, कुल्लू से अजय कुमार, हमीरपुर से राजकुमार, बिलासपुर से इशान गौतम, धर्मशाला से मोहिंद्र सिंह, मंडी से देवेंद्र ठाकुर और चंबा से आयूब की प्रस्तुति…
काट डाले पेड़, बना दिया कंकरीट का जंगल: दूसरा फोटो रिच माउंट से सितंबर 2022 में खींचा है। वर्ष 1930 में शहर की जनसंख्या लगभ्ाग 18,144 थी। वर्ष 2021 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 1,69,578 हो गई। जनसंख्या का दबाव बढ़ने पर पेड़ काटकर यहां कंकरीट का शहर खड़ा कर दिया गया।
वर्ष 1948 में प्रदेश की साक्षरता दर मात्र सात फीसदी थी। यह आज बढ़कर 83.78 फीसदी हो गई है।
प्रदेश के कुल्लू शहर की तस्वीर पहले कुछ और थी, अब इसमें काफी बदलाव हो चुका है। कुल्लू को देवभूमि भी कहा जाता है।
प्रदेश के हमीरपुर जिले का गांधी चौक भी पहले के मुकाबले काफी बदला है।