Ground Report Of Border Villages Of Pathankot – Ground Report: पठानकोट के सीमांत गांवों से दिखता है पाकिस्तान, अपनी सरकारों का कोई अता-पता नहीं, न शिक्षा और न रोजगार

0
174

नवदीप शर्मा, संवाद न्यूज एजेंसी, पठानकोट

द्वारा प्रकाशित: निवेदिता वर्मा
अपडेट किया गया मंगल, 24 मई 2022 05:06 PM IST

सार

सीमांत गांवों में यातायात का कोई साधन नहीं है। गांवों में कोई बस नहीं आती। जिनके पास वाहन नहीं वह लोगों से लिफ्ट मांग कर शहर जाते हैं। युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। इसी कारण वे नशे की गिरफ्त में चले जाते हैं।

पठानकोट के गांव सिंबल से दिखता पाकिस्तान।

पठानकोट के गांव सिंबल से दिखता पाकिस्तान।
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी।

ख़बर सुनें

विस्तार

पठानकोट में पाकिस्तान सीमा से सटे 90 के करीब गांवों के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। बमियाल सेक्टर में पड़ते इन गांवों में 25 गांव ऐसे हैं जो पाकिस्तान सीमा से सटे हैं। इन गांवों में मुख्यत: शिक्षा, रोजगार, सेहत सुविधाओं की कमी है। यातायात सुविधाएं न के बराबर हैं। रोजगार और शिक्षा की कमी से युवा नशे की दलदल में धंसते जा रहे हैं। सीमावर्ती गांव बमियाल, स्कोल, प्लाह और सिंबल के हाल काफी खराब हैं।

नरोट जैमल सिंह

दिन के तीन बजने वाले हैं। सबसे पहले अमर उजाला की टीम पाकिस्तान सीमा के नजदीकी कस्बे नरोट जैमल सिंह पहुंची। कांग्रेसनीत नगर पंचायत के समय में यहां विकास हुआ। यहीं से सीमांत गांवों की छोटी-मोटी जरूरतें पूरी होती हैं। कॉलेज की बात करें तो 90 गांवों के लिए यहां एकमात्र कॉलेज है। स्कूल भी है, लेकिन यातायात के हालात यहां भी सीमावर्ती गांवों की तरह ही हैं। यहां हमारी मुलाकात कारोबारी नरिंदर महाजन से हुई। उन्होंने बताया कि सीमावर्ती गांवों की हालत आजादी के बाद से बदतर है। कई सरकारें आईं और गईं। सीमावर्ती गांवों की दशा नहीं सुधर पाई। रोजगार न मिलने के कारण युवा दूसरे राज्यों या विदेश की ओर रुख कर रहे हैं। यहां खेतीबाड़ी और दुकानों के सिवा कोई काम नहीं।

गांव स्कोल (आबादी 675)

दोपहर के साढ़े तीन हो चले हैं। हम पाक सीमा की जीरो लाइन पर बसे गांव स्कोल पहुंचे। सरपंच परमजीत कौर ने बताया कि सेहत सुविधा न के बराबर हैं। 2 गांव छोड़कर एक मिनी पीएचसी है। वहां डॉक्टर कभी कभार ही बैठता है। यातायात जीरो है। गांव में कोई बस नहीं आती। लोग अपने साधनों से ही आते जाते हैं। जिनके पास वाहन नहीं वह लोगों से लिफ्ट मांग कर शहर जाते हैं। पास ही खड़े सुरजीत सिंह ने बताया कि रोजगार नहीं है। 2 बेटे ग्रेजुएट हैं। पढ़ाई में तेज और अच्छी कद काठी होने के बावजूद सरकारी नौकरी नहीं मिली। बेरोजगार घूम रहे हैं। इसी बेकारी में युवा नशे की गिरफ्त में चला जाता है। आज से 4 साल पहले सीमांत गांवों में नशे के नाम पर केवल शराब थी। लेकिन अब सिंथेटिक नशा युवाओं के  सिर चढ़कर बोल रहा है। ऐसे में क्षेत्र में क्राइम बढ़ा है। इसके बाद सुरिंदर कुमार से मुलाकात हुई। सुरिंदर ने बताया कि रोजगार और शिक्षा की कमी के चलते युवा नशे में डूब रहे हैं। सरकारों का विकास सिर्फ गलियों और सड़कों तक सीमित है। इलाके में कॉलेज, इंडस्ट्री का दूर दूर तक नाता नहीं। बिन वाहन गुजारा कर रहे परिवारों को पैदल ही कोहलियां तक जाना पड़ता है। सरकारें सुविधाओं की ओर ध्यान दें तो लोगों की जिंदगी खुशहाल हो सकती है।

गांव सिंबल (आबादी करीब 900)

4 बज रहे हैं। अब हम हैं गांव सिंबल में। यह भारत-पाक सीमा से सटा है। गांव की हर सड़क से सामने पाकिस्तान दिखाई देता है। किसी मोबाइल कंपनी का नेटवर्क यहां नहीं है। इंटरनेट तो दूर की बात है, लोगों को फोन पर बात करनी हो तो गांव की सीमा से बाहर जाना पड़ता है। यहां हमारी मुलाकात नानक सिंह से हुई। नानक अपने गांव में ही खेतीबाड़ी करते हैं। नानक ने बताया कि यातायात, सेहत और रोजगार की भारी कमी है। कोई बस यहां नहीं आती। अपने वाहनों से ही शहर को जाना पड़ता है। कोई कॉलेज नहीं है। मोबाइल पर कोई नेटवर्क नहीं आता। वहीं, लक्की ने बताया कि सीमांत गांवों में आजकल नशे का चलन पहले से कहीं अधिक हो चुका है। जम्मू-कश्मीर से विशेष समुदाय के लोग यहां नशे की तस्करी करते हैं। बीते दिन गांव वालों ने एक युवक को पकड़ पुलिस के हवाले किया था। लक्की ने कहा कि सरकारें सीमांत गांवों की दशा सुधारने के लिए ईमानदारी से प्रयास करें।

गांव पलाह (आबादी-1000)

उसके बाद हम गांव पलाह पहुंचे। जहां हमारी मुलाकात सुरेश से हुई। पेशे से कलाकार सुरेश आजकल चंडीगढ़ में रहते हैं। बोले, सीमांत गांवों की हालत नशा, शिक्षा की कमी और बेरोजगारी से बदतर हो चुकी है। वह यहां कभी कभार ही आते हैं। सरकारों ने पुल बनवाए पर यातायात की सुविधा नहीं दी। कोविड काल से पहले 14 बसें चलती थीं। अब सब बंद हैं। जिन लोगों के पास अपने साधन नहीं हैं, उन्हें लिफ्ट मांगकर पहले बमियाल, कोहलियां जाना पड़ता है, उसके बाद पठानकोट के लिए कोई साधन मिलता है। 35 किमी का सफर तय करने में 4-5 घंटे लग जाते हैं। सेहत सुविधाओं की कमी सबसे अधिक अखरती है। विकास के नाम पर केवल गलियां और सड़क बनाई। इंटरनेट नहीं चलता। मोबाइल पर बात करने के लिए छत पर जाना पड़ता है। रोजगार न होने से युवा नशे की दलदल में धंसते जा रहे हैं और चोरी, छीनाझपटी की वारदातें कर रहे हैं।

सीएससी पहुंचाएगी सीमांत गांवों में इंटरनेट

इसी दौरान हमारी मुलाकात सीएससी वाईफाई ग्राम चौपाल के पठानकोट इंचार्ज अनुज शर्मा से भी हुई। वह गांव स्कोल में सर्वे के लिए आए थे। अनुज शर्मा ने बताया कि गांव सिंबल और स्कोल भारत के आखिरी गांव हैं। यहां फाइबर बिछाई गई है। कुछ कारणों से काम रुका है। लेकिन, अब काम दोबारा शुरू होगा और प्रधानमंत्री डिजिटल ग्राम योजना के तहत इलाके के स्कूल, पंचायत भवन, आंगनबाड़ी सेंटर समेत सभी सरकारी इमारतों में मुफ्त इंटरनेट की सुविधा दी जाएगी। मॉडम समेत अन्य मशीनरी लगाई जा चुकी है। कुछ जगह से फाइबर की कनेक्टिविटी बची है। जल्द ही उसका काम भी पूरा कर लिया जाएगा। स्थानीय लोग भी इस वाइफाइ का इस्तेमाल नाममात्र खर्चे पर कर सकेंगे।

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here