सार
इस बार चार दिवसीय मेले के दौरान स्पीति, किन्नौर और रामपुर से 200 के करीब घोड़ों का पंजीकरण हुआ जिसमें अधिकतर घोडों को उत्तराखंड से आए व्यापारियों ने अच्छे दामों में खरीदा।
पिन घाटी के लोगों का कहना है कि यह संभवत तिब्बत के जंगली अश्वों से विकसित हुआ है। दरअसल, चामुर्थी तिब्बत में एक गांव है और इसी गांव के नाम पर इस अश्व का नाम पड़ा है। बताया जाता है कि आज से करीब 400 साल पहले जब भारत-तिब्बत व्यापार शिपकी ला से होता था। तब वहीं से यह नस्ल स्पीति में आई। इसकी शुद्ध नस्ल मुख्य रूप से स्पीति की पिन घाटी में पाई जाती है।
इस नस्ल की कई खूबियां हैं, जिनके कारण यह स्पीति किन्नौर के शून्य और कम तापमान, ऊंचाई और दुर्गम क्षेत्रों में भी सुगमता से अपना कार्य करता है। अति ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जहां ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है, वहां भी काम आसानी से करता है। इसकी टांगों की लंबाई कम होती है, जिसके कारण अपना संतुलन पहाड़ी क्षेत्रों में बनाए रखता है।
इन्हीं गुणों के कारण तिब्बत सीमा पुलिस बल चामुर्थी घोड़े का सीमा के अति दुर्गम क्षेत्रों में सामान की ढुलाई के लिए करते हैं। इस बार चार दिवसीय मेले के दौरान स्पीति, किन्नौर और रामपुर से 200 के करीब घोड़ों का पंजीकरण हुआ जिसमें अधिकतर घोडों को उत्तराखंड से आए व्यापारियों ने अच्छे दामों में खरीदा। जिसमें स्पीति के नमज्ञाल का चामुर्थी घोड़ा सबसे अधिक 57,500 रुपये में बिका।
विस्तार
हिमाचल प्रदेश के अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में इस बार स्पीति के लरी से पहुंचे चामुर्थी घोड़े लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बने रहे। इन घोड़ों को ‘पहाड़ का जहाज’ या ‘शीत मरुस्थल का जहाज’ भी कहा जाता है। वर्तमान में भारत में घोड़ों की कुल छह नस्लें ही राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार की ओर से मान्य हैं, जिसमें लाहौल-स्पीति की पिन घाटी की चामुर्थी नस्ल शमिल है। सुंदर, शालीन एवं अत्यंत समझदार यह अश्व अपने विशेष गुणों के कारण शीत मरुस्थल स्पीति के साथ विश्व भर में प्रसिद्ध है।
पिन घाटी के लोगों का कहना है कि यह संभवत तिब्बत के जंगली अश्वों से विकसित हुआ है। दरअसल, चामुर्थी तिब्बत में एक गांव है और इसी गांव के नाम पर इस अश्व का नाम पड़ा है। बताया जाता है कि आज से करीब 400 साल पहले जब भारत-तिब्बत व्यापार शिपकी ला से होता था। तब वहीं से यह नस्ल स्पीति में आई। इसकी शुद्ध नस्ल मुख्य रूप से स्पीति की पिन घाटी में पाई जाती है।
इस नस्ल की कई खूबियां हैं, जिनके कारण यह स्पीति किन्नौर के शून्य और कम तापमान, ऊंचाई और दुर्गम क्षेत्रों में भी सुगमता से अपना कार्य करता है। अति ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जहां ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है, वहां भी काम आसानी से करता है। इसकी टांगों की लंबाई कम होती है, जिसके कारण अपना संतुलन पहाड़ी क्षेत्रों में बनाए रखता है।
इन्हीं गुणों के कारण तिब्बत सीमा पुलिस बल चामुर्थी घोड़े का सीमा के अति दुर्गम क्षेत्रों में सामान की ढुलाई के लिए करते हैं। इस बार चार दिवसीय मेले के दौरान स्पीति, किन्नौर और रामपुर से 200 के करीब घोड़ों का पंजीकरण हुआ जिसमें अधिकतर घोडों को उत्तराखंड से आए व्यापारियों ने अच्छे दामों में खरीदा। जिसमें स्पीति के नमज्ञाल का चामुर्थी घोड़ा सबसे अधिक 57,500 रुपये में बिका।