Bhaskar Khas: Banana tree used to be useless after taking fruits, Hemant is making unique artifacts by extracting fiber from the same tree | भास्कर खास: फल लेने के बाद केले का पेड़ हो जाता था बेकार, हेमंत उसी पेड़ से रेशा निकाल कर बना रहे अनोखी कलाकृतियां

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फरीदाबाद26 मिनट पहले

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अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में केले के रेशे से आकृति बनाते शिल्पकार हेमंत रॉय। - Dainik Bhaskar

अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में केले के रेशे से आकृति बनाते शिल्पकार हेमंत रॉय।

  • -पश्चिम बंगाल के बीरभूमि के शिल्पकार ने विकसित की अनोखी कला, पिता करते थे खेतीबाड़ी, शिल्पकार ने ‘बनाना फाइबर क्राॅफ्ट’ को बनाया रोजगार का जरिया।

भोला पांडेय।फरीदाबाद

फल लेने के बाद किसान जिस केले के पेड़ को काटकर फेंक देते थे, उसी से रेशे निकालकार पश्चिम बंगाल के 24 वर्षीय शिल्पकार हेमंत राॅय ने बनाना फाइबर क्राफ्ट की अनोखी कलाकृति बनाकर रोजगार का माध्यम बना लिया। राॅय पश्चिम बंगाल के बीरभूमि जिले के अकेले शिल्पकार हैं जिन्होंने बनाना फाइबर क्रॉफ्ट की कलाकृति विकसित कर देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचा रहे हैं। फैशन डिजाइन का कोर्स कर रहे हेमंत छह साल से इस कला को नया रूप देने में जुटे हैं। उन्होंने अब इसे अपने रोजगार का माध्यम बना लिया है। अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में वह इस अनोखी कलाकृति से लोगों को आकर्षित कर रहे हैं।

केला के पेड़ के रेशे से ऐसे देते हैं आकार:

दैनिक भास्कर से बातचीत में हेमंत राॅय ने बताया कि उनके राज्य में जूट का कारोबार हाेता है। जूट से अनेक तरह के सामान बनाए जाते हैं। कुछ किसान केले की फसल उगाते हैं। फल लेने के बाद किसान उसे काटकर फेंक देते थे। उन्होंने बताया उस पेड़ को 10 से 15 रुपए में खरीदकर उसे दो हिस्से में फाड़कर एक-एक परत अलग करते हैं। फिर परत को गन्ने का रस निकालने वाली मशीन में डालकर उसमें से फाइबर निकालते हॅैं। उसे सुखाकर रेशा निकालते हैं। फिर उससे कलाकृति बनाते हैं।

केले के पेड़ के रेशे से बनाते हैं ये सामान:

शिल्पकार ने बताया कि केले के पेड़ से निकलने वाले रेशे से विभिन्न देवी देवताओं की आकृति के अलावा मैट, जानवरों की आकृति जैसे घोड़ा, हिरण, शेर, मनी प्लांट कटोरी, पानी ढकने का ढक्कन, पेन स्टंट, फोन स्टंट आदि बनाते हैं। खास बात यह है कि ये कलाकृतियां हल्की होने के कारण गिरने से टूटने का भी अंदेशा कम रहता है। उन्होंने बताया इस कला के शुरू होने से बीरभूमि के किसानों को डबल इनकम हो रही है। उन्हें केले का भी पैसा मिल रहा है और उसके पेड़ का भी। अब लोग केले की फसल पैदा करने में भी दिलचस्पी ले रहे हैं।

कलाकृति में रंग का नहीं करते हैं प्रयोग:

रेशे से बनने वाली किसी भी आकृति में कोई रंग का प्रयोग नहीं होता। कई आकृति में रेशे के अलावा केले के पेड़ की छाल का भी प्रयोग किया जाता है। इनके पिता किसानी करते थे। जिससे सिर्फ भोजन की व्यवस्था हो पाती थी। हेमंत रॉय के अनुसार उन्होंने अब इस कला को अपने रोजगार का जरिया बना लिया। वह महीने में घर बैठकर 20 से 22 हजार रुपए का कारोबार कर लेते हैं।

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