शून्य तिथियों में न करें कोई शुभ कार्य, बुरा होता है परिणाम |

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lekhaka-Gajendra sharma

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नई दिल्ली, 28 जनवरी। हिंदू परिवारों में प्रत्येक शुभ कार्य करने से पूर्व शुभ मुहूर्त देखना एक परंपरा है। शुभ मुहूर्त के बिना कोई भी कार्य संपन्न नहीं किया जाता है। कई बार लोग मुहूर्त नहीं देखते और काम बिगड़ जाता है। इसलिए पंचांग शुद्धि देखी जाती है। तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण इन पांच अंगों से मिलकर पंचांग बनता है। इनमें से प्रत्येक अंग अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम बात करते हैं तिथियों की। प्रत्येक माह में एक शून्य तिथि आती है जो विवाह को छोड़कर अन्य प्रत्येक शुभ कार्य के लिए वर्जित कही गई है।

शून्य तिथियों में न करें कोई शुभ कार्य, बुरा होता है परिणाम

क्या होती है शून्य तिथि

चैत्र कृष्ण अष्टमी, वैशाख कृष्ण नवमी, ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, आषाढ़ कृष्ण षष्ठी, श्रावण कृष्ण द्वितीया-तृतीया, भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा-द्वितीया, आश्विन कृष्ण दशमी-एकादशी, कार्तिक कृष्ण पंचमी, कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी, अगहन कृष्ण सप्तमी-अष्टमी, पौष कृष्ण चतुर्थी-पंचमी, माघ कृष्ण पंचमी, माघ शुक्ल तृतीया शून्य तिथि कही गई है। इन तिथियों में विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी शुभ कार्य करना ठीक नहीं होता। शून्य तिथि में शुरू किए गए कार्य सफल नहीं होते और उल्टी हानि होती है।

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ज्वालामुखी योग

  • तिथियों और नक्षत्रों से मिलकर ज्वालामुखी योग बनता है। इस योग में भी कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यह भयंकर योग होता है जिसमें किए गए कार्य का परिणाम भयंकर होता है। इसके बारे में कहा जाता है-
  • जन्मे सो जीवे नहीं, बसै जो उजड़ जाय
  • स्त्री पहिने चूड़ा विधवा होय, गये गांव न बहरे, कुएं नीर सुखाय।
  • प्रतिपदा को मूल नक्षत्र, पंचमी को भरणी, अष्टमी को कृतिका, नवमी को रोहिणी, दशमी को अश्लेषा और एकादशी को मघा नक्षत्र हो तो ज्वालामुखी योग बनता है।

English summary

Do not do any auspicious work on zero dates or Shunaya Tithi, why, read here.

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