भट्ट बताते हैं कि उनकी नई दिशाएं हेल्पलाइन पर लगभग 70 फीसदी माता-पिता ही फोन करके पूछते हैं कि मेरे बच्चे का नंबर कैसे बढ़ेगा. माता-पिता ने अपने बच्चों के बोर्ड एग्जाम के नंबर को प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है, इसलिए वे उन्हें अनजाने में तनाव देते हैं. वे चाहते हैं कि सोसायटी में जब बात हो तो पड़ोसी और रिश्तेदारों से उनके बच्चे का रिजल्ट अच्छा हो ताकि वे अपनी कॉलर ऊंची कर सकें. इसी तनाव में बच्चे अपनी स्वाभाविक जिंदगी नहीं जी पाते और आत्महत्या करने जैसा कदम उठा लेते हैं.
खराब परिणाम को लेकर ताने न मारें, धैर्य रखें
भट्ट एक दशक से बच्चों की काउंसिलिंग कर रहे हैं. वह कहते हैं, ‘बच्चों का पास होना तो बहुत आसान है, बस टेक्निक पता होनी चाहिए. हम उनकी पढ़ाई आसान करने की जगह दूसरी ओर ध्यान देते हैं. हमारा सेलेबस ऐसा नहीं है कि 50-55 परसेंट नंबर न आए. लेकिन जब घर वालों ने इतना तनाव दिया हुआ है कि नंबर ही सब कुछ है तो ऐसे में सबकुछ बिगड़ता चला जाता है. ध्यान रखना चाहिए कि आपके बच्चे की जिंदगी नंबरों से बहुत बड़ी है. हम उनके साथ खड़े हों, लेकिन उन्हें तनाव न दें तो शायद बेहतर रिजल्ट आएगा. ध्यान रखिए आपके ताने बच्चे को बेकार बनाएंगे.’ (ये भी पढ़ें: कभी पढ़ाई में फिसड्डी थे, आज करोड़ों के मालिक हैं)
अपने अनुभव शेयर करते हुए भट्ट ने बताया, ‘अक्सर मां-बाप कहते हैं कि मेरे बेटा-बेटी दिन रात मेहनत करते हैं फिर भी या तो फेल हो जाते हैं या फिर नंबर बहुत कम आता है.’ मानो बच्चे नहीं मां-बाप की परीक्षा हुई हो. हम उन्हें सुनते हैं फिर बच्चों से बात करते हैं. उन्हें ट्रिक बताते हैं कि पढ़ाई सहजता से कैसे बहुत अच्छी हो सकती है. इससे कई बच्चे बिना तनाव लिए टैली में काफी ऊपर पहुंच गए.
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