देश में अब तक इस बीमारी के 20 से 30 केस ही आए सामने, इलाज के लिए एक विषेश आहार की होती है जरूरत | So far only 20 to 30 cases of this disease have come to the fore in the country, a special diet is needed for treatment.

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नोएडा11 मिनट पहले

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डॉक्टरों ने किया बच्चे का इलाज - Dainik Bhaskar

डॉक्टरों ने किया बच्चे का इलाज

नोएडा के सेक्टर-30 पीजीआईसीएच नोएडा के चिकित्सकों द्वारा 4 साल के बच्चे में एक बहुत ही दुर्लभ मेटाबोलिक बीमारी का इलाज कर उसकी जान बचाई गई। यशराज (4 साल का बच्चा) को अचानक एन्सेफैलोपैथी का दौरा पड़ा और उसे बहुत ही गंभीर स्थिति में अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में लाया गया। यहां डॉ उमेश शुक्ला के नेतृत्व में इमरजेंसी विभाग की टीम ने प्राथमिकता के आधार पर बच्चे का इलाज किया। इसके बाद इलाज के लिए मेडिकल जेनेटिक्स विभाग और डायटेटिक्स विभाग के चिकित्सकों की एक टीम बनाई गई।

10 दिन वेंटीलेटर सपोर्ट पर रहा बच्चा
इस बच्चे के परिवार में इससे पूर्व दो बच्चों की मृत्यु इसी तरह के बीमारी की वजह से हो चुकी है। उनको समय पर इलाज नहीं मिला था। बाल रोग विशेषज्ञों की टीम में डॉ. डी.के. सिंह, डॉ. भानु और डॉ वर्निका शामिल रहे। बच्चा 10 दिन वेंटिलेटर सपोर्ट पर था और वह इस दौरान हाइपोग्लाइकेमिक एपिसोड से भी पीड़ित था।

हाइपोग्लाइकेमिक एपिसोड से पीड़ित बच्चा

हाइपोग्लाइकेमिक एपिसोड से पीड़ित बच्चा

ग्लूटेरिक एसिडेमिया का था संदेह
मेडिकल जेनेटिक्स विभाग डॉ मयंक निलय ने बच्चे को ग्लूटेरिक एसिडेमिया (आनुवंशिक मेटाबोलिक विकार) होने का संदेह किया और बच्चे आनुवंशिक परीक्षण करवाया गया। इस परीक्षण के परिणाम के अनुसार बच्चे का इलाज शुरू किया गया। बच्चे के स्वास्थ्य में बेहतर सुधार हुआ।

इस दवा का करवाया जाता है सेवन

इस दवा का करवाया जाता है सेवन

एक लाख में एक बच्चे को होती है बिमारी
डाक्टर मयंक ने बताया कि इस बीमारी की अनुमानित विश्वव्यापी आवृत्ति एक लाख नवजात शिशुओं में से एक का है। इस रोग के इलाज के लिए एक विशिष्ट आहार (कम लाइसिन, ट्रिप्टोफैन) की आवश्यकता होती है। मरीज के लिए उपरोक्त डाइट प्लान जैस्मीन के आहूजा (क्लिनिकल डायटिशियन) व डॉ. मयंक निलय के साथ परामर्श कर बनाया गया है। ये डाइट समय के साथ बदलेगी। उन्होंने बताया कि भारत में इस बीमारी से ग्रसित लगभग 20-30 मरीज सामने आए हैं। जिनमें से सबसे ज्यादा एम्स, नई दिल्ली से रिपोर्ट किए गए हैं।

विदेशों में नवजात बच्चों में होती है स्क्रीनिंग
संस्थान के निदेशक, डॉ अजय सिंह ने बताया कि पश्चिमी देशों में नवजात बच्चों की जेनेटिक स्क्रीनिंग की जाती है। जिससे ऐसी बीमारियों का तत्काल निदान हो जाता है। लेकिन भारत में नवजात बच्चों की इस तरह की जेनेटिक स्क्रीनिंग नहीं होती है या बहुत कम मात्रा में होती है। जिसके कारण इस तरह के मेटाबोलिक संबंधी विकारों के निदान में देरी हो रही है। यशराज अब फिट हैं और जल्द ही उन्हें घर पर देखभाल के लिए अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी।

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